बदहाल सरकारी स्कूल
बदहाल सरकारी स्कूल किसी भी राष्ट्र कि पूंजी उसके नागरिक होते हैं. लोकतांत्रिक राज्यों में उनकी महत्ता तो और अधिक ही है क्यूंकि नागरिक उस देश के लिए नेता चुनते हैं जो ये प्रयास करें कि देश आगे बढ़े, प्रगति करे और साथ में उसके नागरिक भी. इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए कल्याणकारी राष्ट्र कि संकल्पना की गई, नागरिकों के स्वास्थ्य और शिक्षा की ज़िम्मेदारी संविधान द्वारा सरकार के ऊपर तय की गई. भारतीय संविधान में शिक्षा को समवर्ती सूचि में रखा गया है तथा अनुच्छेद 21- अ के तहत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को 6-14 आयु वर्ग के बच्चों का मौलिक अधिकार माना गया है. साथ ही 2009 के शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत भी भारतीय राज्य शिक्षा के प्रति संकल्पबद्ध है. ये तो हुई कानून के दायरे में आने वाले कुछ नियमों और अधिकारों की जिनका पालन करना न सिर्फ नेताओं का बल्कि नागरिकों का भी काम है. आज़ादी के सत्तर साल बाद और शिक्षा का अधिकार अधिनियम के सत्रह साल बाद भी हम दावे के साथ इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकते की क्या सरकारी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चे गुणवत्तायुक्त शिक्षा ग्रहण कर रहें हैं? क्या वे